देहरादून: हिमालय की ऊंचाइयों पर बसा एक दिव्य मंदिर जिसका नाम है केदारनाथ जो स्वयं भगवान शिव का धाम है। क्या आपने कभी यह सोचा कि यह मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहां इंसानों की सांसे भी जवाब देने लगती हैं? वहां हजारों साल पहले बिना मशीन, बिना इंजीनियर, बिना कोई भी आधुनिक टेक्नोलॉजी के ऐसा भव्य मंदिर बनाया गया जो 400 वर्षों तक बर्फ के नीचे दबा रहा। बिना किसी खरोच के। क्या यह केवल वास्तु का चमत्कार था या फिर किसी दिव्य शक्ति की सजीव उपस्थिति?

कैसे कोई उस समय में बिना किसी इंटरलॉकिंग टेक्नोलॉजी या नक्शे के ऐसा मंदिर बना सकता है। यह एक मंदिर नहीं है। एक दिव्य रहस्य है जहां विज्ञान, धर्म और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का मिलन महसूस किया जा सकता है।
16 जून 2013 की रात में केदारनाथ में भीषण बाढ़ आई। आसमान से गहर बरसा, बादल फटे और कई घर जल के भीतर समा गए। हजारों जिंदगियां उस बाढ़ में बह गई। ठीक उसी समय 20 फीट का पत्थर जिसका करीबन 30 टन वजन होगा वो मंदिर के पीछे आकर रुक गया और केदारनाथ को डूबने से बचा लिया। उसने बाढ़ का रुख मोड़ा। मंदिर की रक्षा की और खुद को बना लिया।
भीम शिला यह शिला आज भी वहीं स्थित है। मानो कह रही हो यहां स्वयं शिव की शक्ति है। लेकिन सवाल अभी खत्म नहीं होता। केदारनाथ का कपाट साल में छह महीनों के लिए बंद रहता है। और चौंकाने वाली बात तो यह है कि उस समय पर ना ही कोई मंदिर के भीतर रहता है और ना ही उसके आसपास। फिर भी गर्भ गृह में रखा दीपक लगातार जलता रहता है। वो लौ बुझती नहीं।
यह कैसे संभव है? और यहीं पर सवाल आता है शिवलिंग के आकार का जो कि त्रिकोणीय आकार के जैसा है। क्यों यह इतना अलग है? क्या यह संकेत है किसी रहस्य का?

केदारनाथ मंदिर हिमालय की गोद में बसा है जिसे स्वयं भगवान शिव जी का धाम माना जाता है। यह समुद्र तल से 3583 मीटर ऊंचा है। इस मंदिर को देखकर यह सवाल उठता है कि इतना भव्य मंदिर आखिर किसने बनाया? क्या किसी देवता ने या फिर किसी पुराने भारत के इंजीनियर ने?
केदारनाथ मंदिर की रचना अपने आप में ही भव्य है। यह खास तरह के पत्थरों से बना है जो भूरे रंग के हैं और इस प्रकार के पत्थर उस स्थान पर नहीं मिलते। तो जरा गौर कीजिए जब यह मंदिर बनाया जा रहा होगा तब 6 से 8 टन के भारी पत्थरों को 20 से 30 कि.मी. दूर से लाया गया होगा और 12,000 फीट की ऊंचाई पर चढ़ाया गया होगा। यह कैसे संभव है? आज की एडवांस टेक्नोलॉजी भी यह काम करने में असमर्थ है।
चौंकाने वाली बात तो यह है कि इन पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। खास इंटरलॉकिंग जैसी एडवांस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिसमें पत्थरों को इस तरह तराशा और फिट किया जाता है कि वे बिना किसी बाहरी सहारे के आपस में जुड़े रहते हैं।
यह तकनीक इतनी कठोर है कि 2013 की भयानक बाढ़ जो केदारनाथ में आई थी, जिससे कई घर, सड़कें, पेड़ पौधे सभी जल प्रवाह में डूब गए थे। लेकिन केदारनाथ मंदिर अडिग रहा। इसका एक कारण इंटरलॉकिंग तकनीक को भी माना जाता है।

केदारनाथ मंदिर की उम्र की बात करें तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई के अनुसार कार्बन डेटिंग जैसी तकनीक से पता चला कि यह मंदिर 1200 से 1500 साल पुराना है। लेकिन हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की उम्र 5000 साल से भी पुरानी है। कहा जाता है कि यह मंदिर पांडवों ने बनाया था।