देहरादून: धारी देवी मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर मां काली को समर्पित है और इसे अत्यंत रहस्यमई एवं शक्तिशाली माना जाता है। 16 जून 2013 को उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में कुछ ऐसा हुआ जिसे आज तक लोग भूल नहीं पाए। धारी देवी की मूर्ति जो लगभग 500 वर्षों से अपने स्थान पर विराजमान थी, उसे सरकार ने हटा दिया। और उसी शाम केदारनाथ और बद्रीनाथ की घाटियों में सबसे बड़ी तबाही शुरू हुई।

लोगों का मानना है कि धारी देवी का श्राप था जो उत्तराखंड पर टूट पड़ा। धारी देवी को चारों धामों की रक्षक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि उनके आशीर्वाद के बिना चारधाम यात्रा अधूरी रह जाती है।
2006 में एक बड़ी हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना के चलते धारी देवी की मूर्ति को उसके मूल स्थान से हटाने का प्रस्ताव सामने आया। स्थानीय जनता और तमाम धार्मिक संगठनों ने मंदिर को हटाने के विरोध में आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी।
16 जून 2013 की शाम जब भारी बारिश और बाढ़ की चेतावनी दी गई तो मंदिर समिति ने मजबूर होकर देवी की मूर्ति को ऊंचे अस्थाई चबूतरे पर स्थानांतरित करने की अनुमति दी। जैसे ही मूर्ति को उठाया गया, आकाश में जबरदस्त बिजली चमकी, तेज गर्जना हुई और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।
ठीक 1 घंटे बाद केदारनाथ में पहला बादल फटा। इस आपदा में 654 लोगों की जान चली गई। करीब 3 लाख तीर्थ यात्री और पर्यटक अलग-अलग घाटियों में फंस गए और 20375 गांव पूरी तरह से बाहरी दुनिया से कट गए।

स्थानीय पंडितों और गांव वालों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि धारी देवी को मत छेड़ो नहीं तो प्रकोप होगा। लेकिन जब उनकी बात को नजरअंदाज किया गया तो ऐसी कुदरती आफत आई कि पूरा देश हिल गया।
धारी देवी का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। यह मंदिर द्वापर युग की सबसे प्राचीन शक्तिपीठों में से एक है जिसे पांडवों ने भी पूजा था। धारी देवी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। सुबह वह एक मासूम कन्या के रूप में दिखाई देती है, दोपहर होते-होते एक युवा स्त्री का रूप लेती है और शाम ढलते-ढलते देवी का चेहरा वृद्धा की तरह प्रतीत होता है।
यह परिवर्तन ना तो कोई जादू है ना कल्पना। यह एक ऐसा रहस्य है जिसे लाखों श्रद्धालु अपनी आंखों से देख चुके हैं। यह प्रमाण है कि प्राचीन भारतीय शिल्पकार सिर्फ कलाकार ही नहीं बल्कि गहरे वैज्ञानिक सोच वाले मास्टर क्राफ्ट्समैन थे।
